Thursday, November 14, 2013

स्त्री मर्यादा और अपना कानून

सीबीआई आज कल अपने काम के बजाय धमकियों  नसीहतों और अपने डाइरेक्टर की फिसलनी चमड़े की जुबान के ज्यादा चर्चा मे है हालांकि वे एक पुरानी कहावत कह रहे लेकिन हिंदुस्तान मे अङ्ग्रेज़ी कहावत कितने लोग कब तक समझे ?सिन्हा कोई पहले अधिकारी नहीं है जो ऐसी असवेंदंशील व्कतव्य के लिए शर्मिंदा किए गए है न ही ऐसे लोक सेवक है जिन होने अपने वक्तव्य पर पर माफी मांगी हो यह दूसरी बात हैं बहुत चालाकी से उन्होने कहा कि अगर कोई आहत हुआ है तो मानो उन्होने कोई अपराध नहीं किया अब अगर किसी को चोट लग गयी तो उतने ही शर्मिंदा है जितना कोई छोटा बच्चा अपनी गलती के लिए माता पिता के दबाव मे उस बात के लिए सोर्री  बोलता है जबकि उसे लगता है कि उसने कोई गलती नहीं की। लेकिन बात अगर सोर्री पर खत्म हुई तो महिला संगठनो की बरसो से लड़ी जा रही लड़ाई एक बार फिर स्टार्टिंग पॉइंट पर लॉट  जाएगी ।इसके पहले केपीएस  गिल के केस मे ऐसे बात आई गयी हो गयी और सब उस बात को भूल गए । उप्र के एक मंत्री केवल डीएम  की खूबसूरती की तारीफ करने पर मंत्री पद गंवा बैठे थे तो सिन्हा को सस्पैंड तो किया ही जाना चाहिए । कल देव प्रबोधनी एकादशी थी जिन घरों मे कार्तिक मे तुलसी पुजा की परंपरा है वे इस दिन को तुलसी विवाह के रूप मे मनाते है जिसमे वृन्दा का विवाह विष्णु से किया जाता है । जबकि इस दिन को महिला संगठनो को मुहर्रम की भांति दुख दिवस के रूप मे मनाने की परंपरा चलनी चाहिए । पौराणिक कथा के अनुसार एकादशी के दिन विष्णु ने जलंधर नामक दैत्य की पत्नी का शील भंग किया था जिससे उस दैत्य की शक्ति घट जाय और महादेव उसका वध कर सके ।पति के रूप मे विष्णु द्वारा किए गए छल को जानकार तुलसी जो विष्णु की अनन्य भक्त थी ने विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया जो शालिग्राम हुए बाद लक्ष्मी और देवताओं की  प्रार्थना पर श्राप का विमोचन कर वह स्वयं सती हो गई तब से ही तुलसी दल विष्णु पुजा का अभिन्न अंग बन गया ।तुलसी दल शालिग्राम के मस्तक पर चढ़ाये जाने से क्या अपराध की गुरुता कम हो जाती है । क्या परम्पराओं को को मानने से पहले उनकी सार्थकता पर भी विचार किया जाना चाहिए कम से कम राक्षस कर्म की भरत्स्ना करने की जगह उसे गौरवानीव्त तोनही ही किया जाना चाहिए । क्या ही अच्छा हो हम अपने धर्म की गलतियों को स्वीकारें और उन परम्पराओं को त्यागे । सिन्हा जैसे सभी असवेंदंशील अधिकारी को शासन मे बने रहने का कोई हक़ नहीं है चाहे वह सिपाही हो दारोगा या सीबीआई चीफ़ देश का कानून सब के लिए बराबर है और बना रहना चाहिए

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