Thursday, September 26, 2013

बाज़ार का बाजारूपन

कभी हम सब ग्लोबल होने और उदारवादी नीतियो के गुण गाते नहीं थक रहे थे आज उसी गाने बजाने के लिए
रोते फिर रहे हैं की जो जितना था वोह सबके लिए था । आज तो कोई अंटलिया मे रह रहा है कोई अरबों का घोटाला कर घूमता फिर रहा है कोई बिना गलती की सज़ा भोगने को मजबूर है । आज बाजार हमारे घर का बजट फर्नीचर ड्रेस डिक्टेट कर रहा है माँ को कैसा ड्रेस अप होना चाहिए पापा को कौन  सी गाड़ी लेनी चाहिए
  तब  वोः जिम्मेदार लविंग पापा है नहीं तो नहीं । क्या सबेरे का नाश्ता  बनना कौन से आटे की रोटी  खानी है । कौन सा पानी पीना है । सब कुछ बाज़ार तय  करता है हमारी ज़िंदगी हर फैसला क्या बाजार ही तय कर देता  । इस सारे बाजार के जिहाद मे टीवी चैनल ही नहीं अखबारों का भी बड़ा हाथ हैं हर त्योहार पर्व पर बड़े बड़े विज्ञापन देश की बड़ी जन संख्या को प्रभावित करते हैं । लेकिन अब हमारी परंपरा आस्था संस्कृति भी यह बाज़ार ही तय करेंगे क्या ?पीढ़ियों से सभी हिन्दू परिवारों की मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष मे कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं कोई नई वस्तुओं की ख़रीदारी न हीं की जाती हैं तामसिक भोजन नहीं किया जाता मांस मदिरा से परहेज किया जाता है। लेकिन आज एक बड़े अखबार मे एक आलेख प्रकाशित किया गया है जिसमे विद्वानो  के द्वारा बताया गया है कि ऐसा करना आवश्यक नहीं बल्कि पित्रों के आशीर्वाद समझ कर ख़रीदारी की जानी  चाहिए और बताया गया है कि नई वस्तुओ कि ख़रीदारी नहीं करने कि बात कहीं भी नहीं की गयी या ऐसा निषेध नहीं किया गया और इस संदर्भ मे श्री श्रीराम शर्मा के ग्रंथ का हवाला दिया गया मानो सनातन धर्म का  सबसे औथंटिक ग्रंथ हो । 

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