Thursday, July 4, 2013

हाय /टमाटर आह कितना ?क्यों टमाटर

पिछली सदी तक आलू और टमाटर जैसी सब्जियाँ हिंदुस्तानी दिमाग मे भी नहीं थी थाली की तो बात नहीं आती । द्सेक साल पहले तक मटर गोभी टमाटर पातगोभी जैसी सब्जियाँ केवल जाड़ो की ही रौनक हुआ करती
 थी । अब ऐसा क्या हुआ की टमाटर प्याज के बिना खाने की थाली की कल्पना करना कठिन लग रहा है । कभी प्याज के दाम के कारण सरकार गिर जाती है तो कभी आलू टमाटर के दाम बढ्ने से हाहाकार मच जाता है । आखिर हम सब मे इतना अधैर्य क्यों आ गया है किहर छोटीबड़ी कोई भी चीज कि अनुपलब्धता से मानो सर पर हिमालय ही गिर गया । दुनिया मे कितनी बड़ी संख्या मे मानव मात्र को पूरा भोजन भी नहीं मिलता है आवश्यक पोषक तत्व भी उपलब्ध नहीं होते है । विशेषकर तबजब हम इतनी बड़ी त्रासदी से गुजर रहें हैं । सैकड़ो लोग हफ्तों जंगली घास पत्तियाँखाकर पहाड़ो से लौटे है । भोजन कि थाली सामने आनेपर पुरखे प्रणाम करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते थे और ईश्वर को धन्यवाद देते थे । भारत मे इस प्रकार कि महगाइ पर हल्ला मचने का हक नहीं 26 रु जितना मिलता है वह पोषकभी भरपेट भी  । एक तरफ सरकार भोजन कि व्यवस्था मे केवल गेहूं और धन कि बात कर रही है प्याज और टमाटर उसमे शामिल नहीं है । कितनी शर्मनाक व्यवहार जन गण कि हितैषी संस्थाए कर रही है मानो जब तक टमाटर नहीं खाएँगे सांस आकैसे लेंगे । आखिर टमाटर मे है क्या oxalikएसिड ही न जो पेट को साफ रखने के अलावा फाइबर के गुण है हा थाली रौनक तो है सलाद तरी कीसब्जी चाहे आलू हो या पनीर या फिर  नोनवेज ।  
              आज के दिन जब दूसरा तीसरा आदमी आलू  चावल चीनी छोड़ कर सदा खाना बिना किसी मजबुरी के खा रहा है जब किशुगर  cobohydrateकैल्सियम जैसे महत्वपूर्ण तत्व होते है देसी घी तैलमक्खन नमक के अलावा ताला भुना खाना अपनी मर्ज़ी से खाना बंद कर रखा है । बिना किसी हाय तोबा के क्यों ?एक जमाने मे  शुगर कि कमी थी तो लोगो ने मीठा खाना बंद कर दिया गया था । होटल मे चाय के साथ भी चीनी नहीं दी जाती थी उसके लिए अलग से ऑर्डर देना होता था । हम हिंदुस्तानी तो राणा प्रताप के वंशज है जिनोंहोने जिंदगी घास कि रोटियाँ खाकर बिताई थी । हम उनके  वंशज बिना टमाटर प्याज खाना नहीं खा सकते है । हुमे तो कांग्रेस्स के वादे पर ही डकार ले लेनी चाहिए आखिर वो गेहूं चावल देने कि योजना तो लारही है । तो भाई रोटी चावल के सपने देखो प्रभु के गुण गवों ।

नोनवेजनोनवेज।                                                                       

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