मानवाधिकार कब और किसके ?क्यों ?
आज सबसे बड़ी चिंता उत्तराखंड के बाढ़ पीड़ित की नहीं जो मर गए उनके परिवार और जो बरसो बरस के निर्माण योजनाए नष्ट हुई जो लोग वहाँ फसे है उनका कोई मानवाधिकार या संवेधानिक अधिकार नहीं है । क्योंकि वहाँ कोई बड़े नाम वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता अभी तक बयान देने दुख प्रकट करने नहीं पहुंचे तो फिर त्रासदी कैसी सबसे बड़ी दिक्कत है की सारी दुर्घटना मे मरने वाले हिन्दू बहुसंख्यक है तो इस पर चिंता
जितनी हो रही है काफी है पूरी
नाभी हो तो कोनसा ईरान अरब से रिश्ते खराब होने वाले है हर बार यही होता है । कश्मीर मे रोज़ सिपाही अधिकारी मारे जा रहे है । नक्सलवादी रोज़ ट्रेन लूट रहै हैं नागरिकों आरपीएफ़ पोलिसे के लोग मारे जा रहें हैं छतीसगद मे 27 कांग्रेसी नेता मारे गए आज एक आईपीएस सहित सिपाही मारे गए कोई मानवाधिकार वाला दल दिखाई नहीं दिया । मुख्तार अंसारी ने मऊ और आज़म गढ़मे दंगा करवाया हिन्दुओ को मारा गया लेकिन किसी दयालु मनवाधिकारी ने उनके कुकर्म पर अपनी जबान भी खोलना ज्र्रुरी
नहीं समजा यह सारे स्यापे केवल तब होते हैं जब केवल केवल मुसलमान मरते हैं चाहे वो टेररिस्ट हो या अंडर वर्ड का हो 1984 के दंगो की लड़ाई कोई मनवाधिकारी नहीं लड़ रहा गोधरा के नरसनन्हार का मुकदमा लड़ने
कोई नहीं आया एक incountarपर जाने कहाँ कहाँ से लोग निकाल कर पेरवी करने चले आते । अगर वे लोग कल देशद्रोही कांड मे पकड़ भी लिए जाते तो उनको निर्दोष साबित करने की कोशिस होती सज़ा मिलने पर
माफी का हक़बचा रहता है । आरटीआई के द्वारा पता लगाया जाना चाहिए फूंडिंग एजेंसी कौन है । क्या समय आ गया है की बहुसंख्यकों देश छोड़ देना चाहिए या कुछ कानून हमारी हिफाजत के लिए भी होने चाहिए हमारे
मानवाधिकार होने चाइए । किसी भी घटना मे कारण और घटना पूरी देखीजानी चाहिए किसी भी एनजीओको मानवाधिकार की परवी से पहले उसका रिकार्ड दे खा जाना चाहिए हिन्दुओ को मुस्लिमो के लिए और मुस्लिमो को हिन्दुओ की पैरवी की इजाजत दी जानी चाहिए वरना बड़े मीडिया के नाम टीवी परआते ही fantic कितरह
ब्योहार मानवाधिकार के प्रति जागृति तो नहीं क्रोध जरूर जगा देते है ।
आज सबसे बड़ी चिंता उत्तराखंड के बाढ़ पीड़ित की नहीं जो मर गए उनके परिवार और जो बरसो बरस के निर्माण योजनाए नष्ट हुई जो लोग वहाँ फसे है उनका कोई मानवाधिकार या संवेधानिक अधिकार नहीं है । क्योंकि वहाँ कोई बड़े नाम वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता अभी तक बयान देने दुख प्रकट करने नहीं पहुंचे तो फिर त्रासदी कैसी सबसे बड़ी दिक्कत है की सारी दुर्घटना मे मरने वाले हिन्दू बहुसंख्यक है तो इस पर चिंता
जितनी हो रही है काफी है पूरी
नाभी हो तो कोनसा ईरान अरब से रिश्ते खराब होने वाले है हर बार यही होता है । कश्मीर मे रोज़ सिपाही अधिकारी मारे जा रहे है । नक्सलवादी रोज़ ट्रेन लूट रहै हैं नागरिकों आरपीएफ़ पोलिसे के लोग मारे जा रहें हैं छतीसगद मे 27 कांग्रेसी नेता मारे गए आज एक आईपीएस सहित सिपाही मारे गए कोई मानवाधिकार वाला दल दिखाई नहीं दिया । मुख्तार अंसारी ने मऊ और आज़म गढ़मे दंगा करवाया हिन्दुओ को मारा गया लेकिन किसी दयालु मनवाधिकारी ने उनके कुकर्म पर अपनी जबान भी खोलना ज्र्रुरी
नहीं समजा यह सारे स्यापे केवल तब होते हैं जब केवल केवल मुसलमान मरते हैं चाहे वो टेररिस्ट हो या अंडर वर्ड का हो 1984 के दंगो की लड़ाई कोई मनवाधिकारी नहीं लड़ रहा गोधरा के नरसनन्हार का मुकदमा लड़ने
कोई नहीं आया एक incountarपर जाने कहाँ कहाँ से लोग निकाल कर पेरवी करने चले आते । अगर वे लोग कल देशद्रोही कांड मे पकड़ भी लिए जाते तो उनको निर्दोष साबित करने की कोशिस होती सज़ा मिलने पर
माफी का हक़बचा रहता है । आरटीआई के द्वारा पता लगाया जाना चाहिए फूंडिंग एजेंसी कौन है । क्या समय आ गया है की बहुसंख्यकों देश छोड़ देना चाहिए या कुछ कानून हमारी हिफाजत के लिए भी होने चाहिए हमारे
मानवाधिकार होने चाइए । किसी भी घटना मे कारण और घटना पूरी देखीजानी चाहिए किसी भी एनजीओको मानवाधिकार की परवी से पहले उसका रिकार्ड दे खा जाना चाहिए हिन्दुओ को मुस्लिमो के लिए और मुस्लिमो को हिन्दुओ की पैरवी की इजाजत दी जानी चाहिए वरना बड़े मीडिया के नाम टीवी परआते ही fantic कितरह
ब्योहार मानवाधिकार के प्रति जागृति तो नहीं क्रोध जरूर जगा देते है ।
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