Sunday, July 21, 2013

तेजाब और लड़की की ज़िंदगी

आखिरकार हर कर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नींद तोड़ कर अपना फैसला सुनाया । सरकार से ज्यादा संवेदनशील निकली लेकिन क्या उतना किया गया जीतने की जरूरत थी या फिर एक लोलीपॉप पकड़ा दिया है । दोसरी ही बात ज्यादा सही लगती है क्योंकि जब तेजाब से जआले बदन या चेहरे वाली लड़की के 10 से लेकर 40आपरेशन होते है जिसका खर्चा 40 से 50 लाख आता है तो 3 लाख फौरी मदद तो हो सकती है जीवन जीने की सहायता नहीं । न्याय का मतलब न्याय होता हुआ भी दिखना चाहिए । एनजीओ और समाज सेवीओ की मेहनत रंग जरूर लायी लेकिन जब रंग जिंदगी पर चढ़े तब तो कोई बात बने । पूरे फैसले मे तेजाब की बिक्री पर लगाई गई रोक एक ठोस कदम है लेकिन अपराध को जहर देने की धाराओं मे दर्ज करने की बात बेमानी है आखिर तेजाब डालकर किसी औरत की और उसके परिवार की ज़िंदगी छीनने वाले को उतनी ही सज़ा जितनी कुछ रुपयो और जेवरात के लिए जहर खुरानी करने वाले की यह बात बराबर  कैसे हो सकती है ?किसी की इच्छा इतनी बड़ी हो गयी की दूसरे की मर्ज़ी की कोई सुनवाई ही नहीं । कोई आप को पसंद न करे तो उसकी ज़िंदगी मिटाने का हक़ कैसे किसी को मिल सकता है ?मेरी राय मे इस तरह के मुकदमे मे दो स्तर पर फैसले की जरूरत है पहले घायल की देखभाल और दूसरे आरोपी की दबंगाई मनमानी यानि कानून तोड़ने की । ऐसे मुकदमो मे शरीयत कानों की भांति ब्लड मनी तरीके का कोई प्रविधान होना चाहिए जिसमे लड़की की ज़िंदगी भर की देखभाल का खर्चा आरोपी को देना पड़े और दफा 307 हत्या के प्रयास के तहत मुकदमा चलना चाहिए ,आखिर लड़की की ज़िंदगी तो लगभग खत्म हो जाती है कई केसेस मे पीड़िता की मृत्यु हो जाती है । जिन केसेस मे पीड़िता मरतीनहीं  वहाँ ज्यादा तकलीफ परिवार और पीड़ित को उठाना पड़ता है । ऐसी लड़कियों का पुनर्वास बहुत कठिन काम है और इलाज उससे भी कठिन । जरूरी है सरकारी अस्पतालों मे ऐसे बर्न वार्ड हो जहां पीड़ित का इलाज तुरंत शुरू हो जाए पुलिस की कारवाई बाद मे होती रह सकती है । पाकिस्तान  जैसे कट्टर पंथी देश मे तेजाब फेकने पर आतंक फैलाने  की धाराओं मे मुकदमा दर्ज होता है कभी कभी दुश्मन  से भी सीख ले लेनी चाहिए ।

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