Saturday, July 20, 2013

मिड डे मील यानी मुफ्त का भोजन और मुफ्त की मौत

बिहार  के  सारण जिले के प्राथमिक स्कूल मे खाना खाकर 22 बच्चो की मौत और उस पर राजनीतिक बवाल  किसी ने कारण जानने की कोशिश नहीं की मारपीट आगजनी आरोप प्रत्यारोप सब था। नहीं थी तो संवेदन शीलता  सहानभूति चिंता जिसकी जरूरत थी । कहने को तो आजकल हम सब कहते हैं की हम बच्चो के लिए ही जीते हैं उनके हिसाब से ही जी रहें हैं सरकार  भी बच्चो के लिए जितनी चिंता सरोकार जताती है वैसा होता क्यों नहीं ?स्कूल खुलने के पहले स्कूलो की सफाई मरम्मत होनी चाहिए खाना बनाने की जगह पानीकी सफाई की चिंता की जानी चाहिए । ऐसी कोई कवायद कोई स्कूल नहीं करता है । कोल्ड स्टोरेज मे रखे अनाज सब्जियों मे पेसती साइड होना स्वाभाविक है अनाज की गंदगी सब्जियों मे मिले पेस्टिसाइड की मात्रा की जांच क्यप्रिन्सिपल की ज़िम्मेदारी हो सकती है । टीचर यह तो देख सकती है की खाना सबके लिए बने और सबको मिल जाए कैसे बने जगह कैसी है अनाज कहाँ से कैसा आ रहा है ?तो इसके लिए फिर एक कैंटीन मैनेजर की जरूरत होगी बीटीसी बीऐड करके चयनित टीचर को भोजन के निर्माण और शुद्धता की ज़िम्मेदारी देना क्या सरकार की गलत नीति नहीं है ?इसी तरह केपढ़ाई के अलावा बहुत सारे कामो के चक्कर मे टीचर अपने मूल कम से भटक  जाते हैं और 5वीं कक्षा के बच्चो को गिनती तक नहीं आती है हिन्दी की प्राथमिक पुस्तक भी ढंग से नहीं पढ़ पातेहैं । जरूरी है की सरकार अपनी  प्राथमिकताएं तय करे और उस के लिए संसाधन जुटाये । दिक्कत की बात है की साधारण सी बात जिम्मेदार लोगो को नहीं समझ आती है बरसात मे जरा भी भीग जाने पर गेहूं हो या धान खराब हो जाता जिसे गांवो मे जानवरों को भी नहीं खिलाया जाता है ऐसा अनाज सरकार बच्चो के खाने के लिए भेजेगी तो खाने वालों का सारणके बच्चो जैसा ही होगा । बेहतर हो सरकार खरीदे गए अनाज की सुरक्षा करे और बाद मे बाज़ार तक पहुंचाए । जिस व्यक्ति को जिस कम के लिएट्रेंड किया जाय उस से वही कम लिया जाय। 

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