Saturday, May 18, 2013

फिक्सिंग टाइम

जी हाँ आज का समय फिक्सिंग का है । जिसे जब जो आवश्यकता  हुई उसे फिक्स करने या कराने वालों की कमी नहीं है कहावत एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं वो तो पुराने जमाने की बात हुई । आज तो बिना ढुढ़ेही  मिल जाते
या यूं कहिए की आप को ढूंढ ही  लेते हैं । पिछले कई सालो से क्रिकेट मे भी फिक्सिंग का कम ज़ोर शोर  से चल पड़ा है कोई सी सीरीज कहीं भी खेली जाए दो चार महीने बाद पता चलता है की  भई फलां सीरीज़तो  फिक्स थी
 हम भले  लोग कह देते  जाने  दो बच्चे  है दस बीआईएस लाख  कमा ली बूढ़ापे मे  काम आएंगे  लेकिन  अब
 सरकार  के तो पेट मे दर्द  हो चला  भई हम जितना  चाहे  घोटाले  कर ले लेकिन हम को खिलाये बिना  कोई
 बात बॉल वाले की हिम्मत कैसे हुई  किचालीस  लाख धीमे  से समेट ले जाए  और  सरकारी  महकमा चुप  बैठा
 रह  जाय। बड़े बड़े इम्तेहान पास कर जो  आईजी डीजी  बने है क्या ऐवे है आखिर कभी  तो काम करेंगे  ही  हर
 समय क्लब मे ही थोड़े ही गुज़ार सके । रेप  का केस हो या घोटाला  अब हर जगह तो नहीं दोड़ पड़ेंगे  सरकार
 घोटालों से परेशान है इस्तीफा पर इस्तीफा  हो रहा है अब सरकार  बचाने नहीं जाएंगे तब कुर्सी किस  लिए
मिली है । वैसे सरकार ने सही टाइमिंग पर हल्ला बोला है दो चार  खिलाड़ियों  कि ज़िंदगी खराब  हुई  तो उनकी  अपनी करतूत  है । थोड़े दिन सिब्बल खुर्शीद  और के गलों को आराम  मिल गया । बाकी दिग्गी बाबू तो  लगातार फील्डिंग  मे विश्वास  करते है अपने  सिद्धू जी सही चोट कर डाली अब नेता लोग चिल्लाएँ  या पेड  मीडिया वाले  गल बजाए सरदार तो जो चोट करनी थी करके  निकल लिया भाया।

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