Thursday, March 7, 2013

mahiladivas aur aurat hona

 महिला दिवस और औरत होना
                                      एक बार फिर आठ मार्च हाज़िर है और औरत होने का सवाल पहले से विकट .आखिर क्या समस्या है जो बात बढती ही जा रही है ,जितने रास्ते खुलते हैं उतने खतरे तैयार .घर बाहर सड़क सब जगहों  पर  औरत जात की उपस्थिति से इतनी बेजारी की उसकी इज्ज़त और जान सब ख़त्म करने के लिए अपनी जिन्दगी भी खतरे में डाल देने को युवा तैयार है ,कौन माँ बाप है जो बच्चों को ऐसी सीख दे रहे हैं ?कहाँ से आरहे  है ये युवा ?अपने आस पास तो बारहवी पास बच्चो को कैट clat और ऍम बी बी एस की तैयारी में रात दिन एक करते देखा है .फिर इतने सारे धुंधकारी कहाँ से आगये हैं .क्या सिर्फ बलात्कारी को सजा देने से ये यॊन
हिंसा रुकने वाली है क्या ? आज इस विषय पर चिंता करने की भी जरुरत आन पड़ी है ,हर दिन प्रगति का दावा करने वाले समाज में अचानक महामारी की तरह फैलते इस अपराध की जड़ें आखिर कहाँ से खादपानी  ले रही है .उन रास्तों को बंद करना होगा .हर बात बेबात हिंसक होने वाली पंचायतो से जवाब तलब किया जाना चाहिए कि ऐसे लडको के साथ और उनके माँ बाप के खिलाफ क्या कर रहें है .खाप के नेतायों से पूछा जाना चाहिए कि
उनकी परम्परा और नियम कहाँ हैं और छेत्र के किसी नागरिक के अपराध के लिए उन्हें जवाबदेह बनाया जाना
चाहिए .नहीं तो फिर लड़कियों की सु रछा के लिए समाज या सरकार क्या कर सकती है .कुछ रास्ते हो सकते है लडको को बाडों में बंद रखा जाय जब तक वे समाज के जिम्मेदार नागरिक की परीछा ना पास कर ले .नारी नगर बसाये जाये जहाँ औरतो को रखा जाय और मर्दों को केवल सांडो की भांति मैटिंग सीजन में जाने दिया जाय औरत की मर्जी के बिना छुना भी अपराध हो कड़ी सजा मिले या फिर योरोप के चेस्तिती बेल्ट बनाने वालों को टेंडर दे दिया जाय .यह कोई मजाक नहीं हो रहा है जिस देश की राजधानी में चालीस दिनों में बलात्कार का आंकड़ा सैंकड़ा पार कर जाये वहां क्या सम्भावना बची है औरत मर्द के बीच या तो युद्ध छिड़ा है या फिर प्रशाशन सो रहा है. 

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