Friday, March 27, 2020

भगवान जी को चिट्ठी

चिट्ठी भगवान जी के नाम अब हमको अच्छे समझ आ गया है कि हमको पैदा करके कभी आप खुश नही हुए यह तो जानते है ;लेकिन अब ढेर ऊब गए  लगते है । सारी ज़िंदगी जाऊन दौड़ ही आप लगवाए रह सब झेल भइय ॰थोरे दिन शांति रही तो हम  समझा तुम हमे भुलाय गये ,लेकिन ऐस न कैसे हुई सकत कि तुमहार किरपा दृष्टि होवे औरहम चैन कि नींद सोवे . । माघ मास माँ तुम ऐसे फुहारे डारे मानो सावन भादों आय गवा ''आखिर तुमहार मनसा का है बता देव '"नवा नवा प्रयागराज लाखो कल्प वासिन केर तू तो छीछालेदर कर डारेऊ । 

    हमका लागत है अब तुम्हारी उम्र भई शायद कामकाज संभाले मा  तुमका  परेशानी होई रही है । दुई तीन  बरस से तुमहार अनुशासन कुछ समझे मे नही आय रहा । जाड़ा मा ठंड करे भुलाय ? जात हो फागुन चैत्र मा सावन अस झड़ी लगाय दीन्हों मनई कैसे जिये?धन धान्य सब बिगार दारेउ पहले पनि न रहा अब  जब कोनो  तना फसल  पाक ठाढ  भई तो तुमहार टंकी लीक करे लाग  कुल दाना भीग जाई तो दाता  सावन भादों मा  मनई का खाई का बेची ।   

      हमका लागत है धरती कि नाई आसमानों केर सरकार   ठेके पर चल रही है लक्ष्मी मैया तो नवरात्रि महियन धरती चली आई है तुम लंबी तान के सोव लियो भगवन। ऐसे कहूँ सरकार चलत है । तुम सोवों मुला धरती का बंटाढार होई जाई कहे का इन्द्र भगवान का अप्सरा लोगन से फुर्सत नाही मिलत  होई और ठेकेदारी वाला मनई अंजान ओकर जौन मन हॉत वाही बटन दबाई देत है । फागुन बित गइल चैत अधियाय गय मुला बदरी बरखा बिसरते नाही ।


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