Tuesday, January 15, 2013

यह तो ऐसे ही होना था तसलीमा

तुम डरो  नहीं, अभी थको  नहीं,
तुमने क्यों नहीं सोचा था?
महिषासुर और चंड-मुंड,
तो रस्ते में तुम्हे घेरने ही वाले थे।
औरत हो कर प्रश्न उठाना, वो भी धर्म पर?
जो उनकी ही बपौती है, जो बाप होते हैं,
धर्म, जो हमेशा पूरा होता है,
कभी औरत के तन से, कभी मन से,
तुम्हारी आवाज़ रोकने कभी आयेंगे,
कभी महिषासुर, कभी उनके अलमबरदार,
लेकिन...
इस बार कोई देवता नहीं देगा,
अपनी जादुई शक्तियां हमें,
क्योंकि,
यह उनकी सत्ता का युद्ध नहीं है,
साथ छोड़ देंगी सभी सतियाँ,
ऋषि, सत्याकामी पुरुष,
मौलाना, पंडित, पैगम्बर और देवदूत,
यह तो युद्ध है,
हम साधारण औरतों की आज़ादी का,
तन से, मन से, केवल हमारे लिए ही गढ़े गए नियमों से,
इस बार का युद्ध तो लड़ना है,
हम बुरी औरतों को,
जो हर तरह के अंधेरों के खिलाफ है,
जो मन में उठनेवाले प्रश्नों को वहीँ नहीं छोड़ती,
ले आती है जुबां पर, उछाल देती है आसमान पर,
ले जाती है कलम की नोंक तक,
तसलीमा तुम डरना नहीं, अभी थकना नहीं,
थोड़ी देर तो लगेगी ही हमें  आने  में 
निकलना  ही होगा  सभी बुरी औरतो  को इस बार,
लबादो से, बाहर तन के मन के,
खींची गयी लक्ष्मण रेखाओ से,
ऊंची ऊंची  दीवारों  फाटकों को खोलकर  फलांगकर,
और,
तुम्हें बनना  ही होगा हमारा  परचम  लेकर
चलनेवाली आमिर,
वे सब आएँगी तुम्हारें साथ तुम्हारें पीछे,
केवल तुम्हारी  नहीं अपनी लड़ाई  लड़ने,
खींची गयी  सभी रेखायों घेरो  फाटकों कों फलांगकर,
लहुलुहान पैरो  को घसीटते,
तुम जरा दम तो लेलो अभी  उन्हें  खींचने तो दो,
अपने  रास्ते की लकीरें,
फिर तुम अकेली  नहीं होगी तसलीमा,
यकीन रखो  अपनी लड़ाई  पर,
वे सब आएँगी आंधियाँ साथ लेकर  फिर,
फिर मुमकिन नहीं होगा,
हमें पीछे ढकेलना,
तसलीमा तुम थको नहीं...

(c) 2007 Sudha Shukla. All rights reserved.

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